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ग़ज़ल
होश-ओ-हवास-ओ-अक़ल-ओ-ख़िरद दे गए जवाब
यानी नहीं हूँ मैं किसी क़ाबिल तिरे बग़ैर
नादिर शाहजहाँ पुरी
ग़ज़ल
साफ़ इज़हार हो और वो भी कम-अज़-कम दो बार
हम वो आक़िल हैं जिन्हें एक इशारा कम है
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
मुज़्तर हूँ किस का तर्ज़-ए-सुख़न से समझ गया
अब ज़िक्र क्या है सामा-ए-आक़िल को थामना