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ग़ज़ल
शब बीती चाँद भी डूब चला ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े में
क्यूँ देर गए घर आए हो सजनी से करोगे बहाना क्या
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वो किसी की झील आँखें वो मिरी जुनूँ-मिज़ाजी
कभी डूबना उभर कर कभी डूब कर उभरना