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ग़ज़ल
दलाएल से ख़ुदा तक अक़्ल-ए-इंसानी नहीं जाती
वो इक ऐसी हक़ीक़त है जो पहचानी नहीं जाती
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
ख़ब्त है ऐ हम-नशीं अक़्ल-ए-हरीफ़ान-ए-बहार
है ख़िज़ाँ इन की इन्हें आईना दिखलाए हुए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
अक़्ल-ओ-ख़िरद के हंगामों में शौक़ का दामन छूट न जाए
शौक़ बशर को ले जाता है अक़्ल-ए-बशर से आगे भी
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
'इश्क़ की मम्लिकत में है शोरिश-ए-अक़्ल-ए-ना-मुराद
उभरा कहीं जो ये फ़साद दिल ने वहीं दबा दिया
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
अहमद और अहमद-ए-बे-मीम का पर्दा क्या है
अक़्ल-ए-अव्वल को भी हैरत है मुअम्मा क्या है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है
अगर तदबीर हम करते हैं तो तक़दीर हँसती है