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ग़ज़ल
वाह 'अमीर' ऐसा हो कहना शे'र हैं या मा'शूक़ का गहना
साफ़ है बंदिश मज़मूँ रौशन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
दर्द तो साँसों में बस्ते हैं कौन दिखाए तुम्हें
फूलों पर ख़ुशबू का गहना कैसा लगता है
ख़ालिद अहमद
ग़ज़ल
तुझ को अपना ही लिया आख़िर निगार-ए-इश्क़ ने
ऐ उरूस-ए-चश्म ले मोती का गहना आ गया
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
हिज्र इक हुस्न है इस हुस्न में रहना अच्छा
चश्म-ए-बे-ख़्वाब को ख़ूँ-नाब का गहना अच्छा
अख़्तर हुसैन जाफ़री
ग़ज़ल
ज़ंजीरों के बदले अब भी गहने पाती हूँ जैसे
सदियों से ये जब्र के बंधन बीच हमारे उस के थे
कहकशाँ तबस्सुम
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
वो इतना ख़ूबसूरत है कि उस के जिस्म पर सज कर
कोई ज़ेवर कोई गहना मुझे अच्छा नहीं लगता
मोहम्मद नईम जावेद नईम
ग़ज़ल
वाँ तो हाँ हूरों के गहने के बहुत होंगे निशाँ
इन परी-ज़ादों के छल्लों की निशानी फिर कहाँ