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ग़ज़ल
सहारा बन नहीं पाते भले ख़ुद-ग़र्ज़ कुछ बच्चे
मुसीबत हो मगर इन पे तो माँ ग़मगीन होती है
डॉ भावना श्रीवास्तव
ग़ज़ल
बड़ी तब्दीलियाँ होती हैं उल्फ़त उन से होने पर
ज़मीर-ए-ख़ुद-ग़र्ज़ का साज़-ए-बे-आवाज़ होता है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
कीजे लक़ा-ए-बाख़तर-ए-बे-बक़ा को क़ैद
नजतक के सर पे गुर्ज़-ए-गराँ-बार तोड़िए
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
जौहर-ए-ज़ाती हैं उस की तेज़ियाँ ऐ संग-दिल
तेग़-ए-अबरू को तिरी संग-ए-फ़साँ से क्या ग़र्ज़
क़द्र ओरैज़ी
ग़ज़ल
जिसे भी देखिए वो लूटने के फ़न में है माहिर
हवस की ग़र्ज़ में ये ज़िंदगी का कारवाँ क्यों है
मुनीब मुज़फ़्फ़रपूरी
ग़ज़ल
ख़ुद-ग़र्ज़ हो के अपनों के ग़म-ख़्वार ही रहो
इस पार आ गए हो तो इस पार ही रहो
अब्दुल्लाह मिन्हाज ख़ान
ग़ज़ल
सलमान ग़ाज़ी
ग़ज़ल
बहुत नज़दीक से ख़ुद-ग़र्ज़ दुनिया देख ली हम ने
जिसे जैसा समझते थे वही वैसा नहीं निकला
देवेश दीक्षित देव
ग़ज़ल
मुबारक जज़्ब-ए-उल्फ़त आज तो वो मेरी बालीं पर
ब-ग़रज़-ए-गुफ़्तुगू आया ब-उम्मीद-ए-कलाम आया