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ग़ज़ल
उफ़ ये तूफ़ान-ए-नशात और मिरी तब'-ए-हज़ीं
आह ये यूरिश-ए-नाज़ और मैं मजरूह ओ अलील
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
ख़ल्वत में हुआ जल्वा सफ़र में भी वतन है
आफ़ाक़ में अन्फ़ुस है ऊलुल-अज़्म-ए-कमालत
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
मैं अपना दश्त अपने साथ ले कर घर से निकला हूँ
फ़ना करना है ख़ुद को और अलल-ऐलान करना है