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ग़ज़ल
क़ब्र अपनी खोद कर ख़ुद लेट जाओ एक दिन
वक़्त किस के पास है मिट्टी उठाने के लिए
शिवकुमार बिलग्रामी
ग़ज़ल
मफ़्लूज रात कर्ब के बिस्तर पे लेट कर
करती है अब तो आह-ओ-फ़ुग़ाँ कम बहुत ही कम