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ग़ज़ल
पीवे मेरा ही लहू मानी जो लब उस शोख़ के
खींचे तो शंगर्फ़ से ख़ून-ए-शहीदाँ छोड़ कर
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मय-कदा गर चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़ से पावे शिकस्त
मू-ए-शीशा दीदा-ए-साग़र की मिज़्गानी करे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़े पे इक नुक़्ता है और क़ाफ़ पे हैं नुक़्ता दो
काफ़ भी ख़ाली है और लाम भी ख़ाली, ये ले
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ख़ूबान-ए-रोज़गार मुक़ल्लिद तिरे हैं सब
जो चीज़ तू करे सो वो पावे रिवाज आज
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
दुख न पावे कहीं वो नाज़नीं-गर्दन प्यारे
तकिया ज़िन्हार सर-ए-बालिश-ए-मख़मल न करो
आफ़ताब शाह आलम सानी
ग़ज़ल
गिरफ़्तार-ए-हवस क्या लज़्ज़त-ए-दीदार कूँ पावे
जुदा जो कुई हुआ है आप सीं पाया विसाल उस का
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
तीरों में कमाँ-दार मिरा घेर ले जिस को
वो जाने न पावे कभी मैदाँ से निकल कर