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ग़ज़ल
इसी दरिया से उठती है वो मौज-ए-तुंद-जौलाँ भी
नहंगों के नशेमन जिस से होते हैं तह-ओ-बाला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हो कोई मौज-ए-तूफ़ाँ या हवा-ए-तुंद का झोंका
जो पहुँचा दे लब-ए-साहिल उसी को नाख़ुदा समझो
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
ग़ज़ल
मय तुंद ओ ज़र्फ़-ए-हौसला-ए-अहल-ए-बज़्म तंग
साक़ी से जाम भर के पिलाया न जाएगा
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
ब-जुज़ परवाज़-ए-शौक़-ए-नाज़ क्या बाक़ी रहा होगा
क़यामत इक हवा-ए-तुंद है ख़ाक-ए-शहीदाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बुझा दे ऐ हवा-ए-तुंद मदफ़न के चराग़ों को
सियह-बख़्ती में ये इक बद-नुमा धब्बा लगाते हैं