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ग़ज़ल
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना
मिरा ज़ौक़ उन की चाहत मिरा शौक़ उन पे मरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
आली शेर हो या अफ़्साना या चाहत का ताना बाना
लुत्फ़ अधूरा रह जाता है पूरी बात बता देने से
जलील ’आली’
ग़ज़ल
अब हुस्न का रुत्बा 'आली है अब हुस्न से सहरा ख़ाली है
चल बस्ती में बंजारा बन चल नगरी में सौदागर हो