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ग़ज़ल
कोई आबशार न आब-ए-जू किसी और लहर की आरज़ू
मिरी प्यास बुझने का और कोई ठिकाना हो कहीं यूँ न हो
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कोई आबशार न आब-ए-जू किसी और लहर की आरज़ू
मिरी प्यास बुझने का और कोई ठिकाना हो कहीं यूँ न हो