aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "آب_سراب"
ये आब-ए-सराब कुछ नहीं हैजुज़ अरसा-ए-ख़्वाब कुछ नहीं है
क्या लिए फिरता हूँ मैं आब सराब आँखों मेंडूबता ही नहीं कोई कि उभरता ही नहीं
मशक़्क़ती हैं तिरे काख़-ओ-कू-ए-हिज्र के हमऐ कार-ख़ाना-ए-अफ़्लाक-ओ-ख़ाक-ओ-आब-ओ-सराब
कहीं पे आब कहीं पर सराब मौसम काबदन पे फ़र्श बिछा है ख़राब मौसम का
क्या इस में है मौज-ए-आब जैसाबे-लम्स है वो सराब जैसा
सफ़्फ़ाक सराब से ज़ियादाहै इश्क़ अज़ाब से ज़ियादा
दश्त-ओ-सहरा में आब आना हैया'नी कोई सराब आना है
न जाने आज हम पे प्यास का ये कैसा क़हर हैकि जिस तरफ़ भी देखिए सराब ही सराब है
हस्ती अपनी हबाब की सी हैये नुमाइश सराब की सी है
हम क्या कि हद्द-ए-नज़र तक सराब की सूरतन ख़ाक ख़ाक न अब आब आब की सूरत
यारब सराब-ए-अहल-ए-हवस से नजात देमुझ को शराब दे उन्हें आब-ए-हयात दे
हर एक चीज़ यहाँ की सराब होने लगीचमन की आब-ओ-हवा अब ख़राब होने लगी
प्यास मेरी है आब उस का हैरेत उस की सराब उस का है
ख़ुश्क सहरा में आब पढ़ती हैरेत में वो सराब पढ़ती है
रिश्ता-ए-आब-ओ-सराब इक ख़्वाब हैतू भी साया मैं भी साया सोच ले
हवा ने दोश से झटका तो आब पर ठहरामैं कुछ भँवर में गिरा कुछ हबाब पर ठहरा
शरर को आब सहर को सहाब कह देतेवो चाहते तो ग़ज़ल को गुलाब कह देते
जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती हैमिरे यक़ीं को क़रीन-ए-क़यास उतारती है
रखता नहीं है दश्त सरोकार आब सेबहलाए जाते हैं यहाँ प्यासे सराब से
रवाँ है वक़्त रवानी में आब जैसा हैठहर न पाया कहीं भी हबाब जैसा है
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