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ग़ज़ल
कितने आदर्शों के शीशे रग रग में आज़ार बने
लड़ते लड़ते थक कर देखा साया था और तन्हा मैं
बाक़र मेहदी
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
तुम को छोड़ा तो ऐसा लगा जैसे ख़ुद से अलग हो गए
एक मंज़िल को जाते हुए अपने रस्ते अलग हो गए