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ग़ज़ल
आफ़त-ए-अर्ज़-ए-समावी से बचेगा अपना घर
इस्म-ए-आज़म जब है शामिल हर दर-ओ-दीवार में
हामिद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में
ख़ूब मुझे है आज धमा-धम मार-कुटाई सीने में
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ग़म-ए-जिगर-शिकन ओ दर्द जाँ-सिताँ देखा
तुम्हारे इश्क़ में क्या क्या न मेहरबाँ देखा