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ग़ज़ल
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
सहरा की मुँह-ज़ोर हवाएँ औरों से मंसूब हुईं
मुफ़्त में हम आवारा ठहरे मुफ़्त में घर वीरान हुआ
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
यूँ गलियों बाज़ारों में आवारा फिरते रहते हैं
जैसे इस दुनिया में सभी आए हों उम्र गँवाने लोग