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ग़ज़ल
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
मौत की आहट सुनाई दे रही है दिल में क्यूँ
क्या मोहब्बत से बहुत ख़ाली ये घर होने को है
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
ज़मीं की गोद भरती है तो क़ुदरत भी चहकती है
नए पत्तों की आहट से भी शाख़ें भीग जाती हैं