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ग़ज़ल
रह-ए-जुनूँ में लिपटते हैं पाँव से काँटे
ब-हर क़दम ये मिरा एहतिराम होता है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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रह-ए-जुनूँ में लिपटते हैं पाँव से काँटे
ब-हर क़दम ये मिरा एहतिराम होता है
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