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ग़ज़ल
मय-कदे में क्या तकल्लुफ़ मय-कशी में क्या हिजाब
बज़्म-ए-साक़ी में अदब आदाब मत देखा करो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर बा-अदब यूँ हज़रत-ए-नासेह से मिलता हूँ
मुरीद-ए-ख़ास जैसे मुर्शिद-ए-कामिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
ख़मोश ऐ दिल भरी महफ़िल में चिल्लाना नहीं अच्छा
अदब पहला क़रीना है मोहब्बत के क़रीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शायरी में 'मीर' ओ 'ग़ालिब' के ज़माने अब कहाँ
शोहरतें जब इतनी सस्ती हों अदब देखेगा कौन