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ग़ज़ल
ये अदा भी उस की अजीब है कि बढ़ा के हौसला-ए-नज़र
मुझे इज़्न-ए-दीद दिया भी है मिरे देखने पे ख़फ़ा भी है
अख़तर मुस्लिमी
ग़ज़ल
ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा
ख़ुद ही उठ बैठ किसी इज़्न ओ इजाज़त पे न जा
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ
आप ही जब रहे नहीं नाम रहा तो क्या हुआ
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
निकल बाहर तू इन दैर-ओ-हरम के मसअलों से फिर
मोहब्बत ही मोहब्बत की तुझे दुनिया दिखाई दे
अंकित मौर्या
ग़ज़ल
'निशात'-ए-दिल-हज़ीं टकराएँगे जा कर फ़लक से ये
अगर इन दर्द के नालों का दरमाँ हो नहीं सकता
निशात किशतवाडी
ग़ज़ल
उस ने पहले रूप दिया फिर रंग दिया फिर इज़्न दिया
बहर ओ बर में बर्ग ओ समर में नए सफ़र पर निकला में
साबिर वसीम
ग़ज़ल
कुफ़्र अपना ऐन दीं-दारी है गर समझे कोई
इज्तिमा-ए-सुबहा याँ मौक़ूफ़ है ज़ुन्नार पर
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था
दौर-ए-जाम-ए-बे-ख़ुदी बेगाना-ए-अय्याम था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इन दीदा-ओ-दिल की राहों पर तुम किस की तलाश में फिरते हो
जो खोना था सो खो बैठे क्या ढूँडोगे क्या पाओगे
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
ग़ज़ल
इज़्न-ए-नज़ारा तो दिया जुरअत-ए-दीद छीन ली
वो कभी सामने न आए रुख़ से हिजाब उठा के भी