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ग़ज़ल
तवक़्क़ो उस की थी महदूद मैं भी चुप ही रहा
सफ़र के और भी तोहफ़े थे अरमुग़ान के बाद
प्रीतपाल सिंह बेताब
ग़ज़ल
उस के हर्फ़-ओ-लफ़्ज़ में पोशीदा है राज़-ए-हयात
ता-क़यामत रहने वाला अरमुग़ान सूरज का है
मिराक़ मिर्ज़ा
ग़ज़ल
जिगर का ख़ून आँसू में अगर शामिल नहीं होगा
ये मोती अरमुग़ान-ए-दोस्त के क़ाबिल नहीं होगा