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ग़ज़ल
ये जमुना की हसीं अमवाज क्यूँ अर्गन बजाती हैं
मुझे गाना नहीं आता मुझे गाना नहीं आता
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँख में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रौशनी कभी बे-चराग़ ये घर न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़
है मुकर्रर लब-ए-साक़ी पे सला मेरे बा'द
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तबीअत की कजी हरगिज़ मिटाए से नहीं मिटती
कभी सीधे तुम्हारे गेसू-ए-पुर-ख़म भी होते हैं