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ग़ज़ल
वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उन को जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
जाने क्या वज़्अ है अब रस्म-ए-वफ़ा की ऐ दिल
वज़-ए-देरीना पे इसरार करूँ या न करूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
दिल उस से तू माँगे है अबस 'मुसहफ़ी' हर दम
क्या फ़ाएदा इसरार का नादाँ न मिलेगा