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ग़ज़ल
कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
महफ़िल में सुनाता है जब 'जोश' ग़ज़ल अपनी
सब देखते रहते हैं एजाज़-ए-सुख़न उस का
ज़ुबैर बहादुर जोश
ग़ज़ल
इक़बाल के शे'रों में ये एजाज़-ए-सुख़न है
वो इश्क़-ए-मोहम्मद में चमकता हुआ फ़न है
फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
ग़ज़ल
मुझ को बख़्शा है मिरे रब ने ये एजाज़-ए-सुख़न
मैं ने बातिल की नहीं करनी हिमायत कोई
ज़किया शैख़ मीना
ग़ज़ल
मेरे ए’जाज़-ए-सुख़न में मिरा ताबिंदा ख़याल
जज़्बा-ए-नूर-फ़िशानी में ज़रूर आएगा
महमूद अशरफ़ मालेग
ग़ज़ल
मुझ को बख़्शा है मिरे रब ने ये एजाज़-ए-सुख़न
मैं ने बातिल की नहीं करनी हिमायत कोई
ज़किया शैख़ मीना
ग़ज़ल
आठ दस साल में 'मन्नान' ये एजाज़-ए-सुख़न
तुम ने कुछ उम्र-ए-सुख़न अपनी छुपा ली हो होगी
मन्नान बिजनोरी
ग़ज़ल
इज्ज़ एजाज़-ए-सुख़न है मा'नी-ए-ईजाद-ए-फ़न
क़ीमत-ए-अर्ज़-ए-हुनर का कुछ तो अंदाज़ा लगा
मुख़तार शमीम
ग़ज़ल
ज़ौक़-ए-सुख़न है इस लिए लिक्खी गई ग़ज़ल
'एजाज़' वर्ना 'ग़ालिब'-ओ-'सौदा' नहीं हूँ मैं