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ग़ज़ल
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
मेहरबाँ भी कोई हो जाएगा जल्दी क्या है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
उन की रहमत से दूर नहीं लेकिन इस पर मजबूर नहीं
इग़्माज़ करें हर लग़्ज़िश पर सज्दों पर बरहम हो जाएँ
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
हम तो अब जाती रुतें हैं हम से ये इग़्माज़ क्यूँ
जुर्म क्या हम ने किया है आप हैं नाराज़ क्यूँ
कृष्ण मोहन
ग़ज़ल
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
तिरे सदक़े निगाह-ए-नाज़ क्यों अग़माज़ करती है
हमारी बात बन जाती तिरा नुक़सान क्या होता
नश्तर छपरावी
ग़ज़ल
तिरे अग़माज़ की ख़ू सीख ली अहल-ए-मुरव्वत ने
कि महफ़िल दर्द की अब साहब-ए-महफ़िल से ख़ाली है