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ग़ज़ल
कुछ सुकूँ कुछ ज़ब्त कुछ रंग-ए-क़रार आता गया
अल-ग़रज़ इख़्फ़ा-ए-राज़-ए-क़ुर्ब-ए-यार आता गया
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
कैफ़-ए-मस्ती में कि इर्फान-ए-जुनूँ में अल-ग़रज़
वा हर इक बंद-ए-नक़ाब-ए-रू-ए-जानाँ कीजिए
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
ग़म-ए-दौराँ की रही या ग़म-ए-जानाँ की रही
अल-ग़रज़ छेड़ रही मंज़िल-ए-नाकाम के साथ
मंज़िल लोहाठेरी
ग़ज़ल
शब-ए-अदू के साथ दिन को मुझ से छुपते फिरते हो
अल-ग़रज़ फिरते हो यूँ ही रात-भर दिन-भर ख़राब
अनवर देहलवी
ग़ज़ल
ख़ूगर-ए-रस्म-ए-सितम मैं हुआ 'दीवान' अब तो
अल-ग़रज़ अपने लिए अहल-ए-सितम अच्छे हैं
अल-हाज अल-हाफीज़
ग़ज़ल
नज़ीर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
खाद पानी दे सकें कब वक़्त दुनिया ने दिया
अल-ग़रज़ गुल ख़्वाहिशों के हम ने मुरझाने दिए
कमल कटारिया करन
ग़ज़ल
अल-ग़रज़ क्या कहूँ कि क्या हूँ 'अनीस'
ज़िंदगी के लिए अज़ाब हूँ मैं