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ग़ज़ल
बुढ़ापे में नज़र आई ख़ुदा की शान होली में
बनी हैं उन से ज़ाइद उन की अम्माँ जान होली में
नावक लखनवी
ग़ज़ल
ख़ैर दिल की न अमाँ जान की मुमकिन है यहाँ
जिस को प्यारे हों दिल-ओ-जान मोहब्बत न करे
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
इश्क़ में अब के हमें जाँ से गुज़रना भी तो है
काम होने का नहीं काम ये करना भी तो है
मोहम्मद ख़ालिद
ग़ज़ल
क्यों कि अपनों ने ही बख़्शे हैं ये सारे आँसू
इस लिए भी है हमें जान से प्यारे आँसू
अरमान जोधपुरी
ग़ज़ल
किस की आरज़ू थे हम किस ने बे अमाँ छोड़ा
छोड़ो बीती बातों को किस ने क्यों कहाँ छोड़ा