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ग़ज़ल
मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
हस्ती के तलातुम में पिन्हाँ थे ऐश ओ तरब के धारे भी
अफ़्सोस हमी से भूल हुई अश्कों पे क़नाअत कर बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
एक हमी ना-वाक़िफ़ ठहरे रूप-नगर की गलियों से
भेस बदल कर मिलने वाले सब जाने-पहचाने लोग
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
हर एक की हर पसंद ठहरे हर एक का इंतिख़ाब निकले
हमी को अच्छा बताया सब ने हमी ज़ियादा ख़राब निकले
अक़ील नोमानी
ग़ज़ल
अमीर हम्ज़ा आज़मी
ग़ज़ल
राख समेटे चूल्हे की वो रोटी अक्सर कहती है
अम्मी के बूढ़े हाथों का जादू माँगे आज़ादी