aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "اندھیروں"
सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों मेंमैं अपने घर के अँधेरों को लौट आऊँगी
बरहना हैं सर-ए-बाज़ार तो क्याभला अंधों से पर्दा क्यों करें हम
इन अँधेरों से ही सूरज कभी निकलेगा 'नज़ीर'रात के साए ज़रा और निखर जाने दे
मैं सारी उम्र अँधेरों में काट सकता हूँमिरे दियों को मगर रौशनी पराई न दे
चमकती है अंधेरों में ख़मोशीसितारे टूटते हैं रात ही में
मिशअलें ले के तुम्हारे ग़म कीहम अंधेरों में चला करते थे
ज़िंदगी अपनी अँधेरों में बसर करता हैतेरे आँचल को सितारों से सजाने वाला
मैं अँधेरों से बचा लाया था अपने-आप कोमेरा दुख ये है मिरे पीछे उजाले पड़ गए
चाँद रातों में हमें डसता है दिन में सूरजशर्म आती है अँधेरों से कमाई लेते
ये कौन लोग अँधेरों की बात करते हैंअभी तो चाँद तिरी याद के ढले भी नहीं
आँख वीरान सही फिर भी अँधेरों को 'नसीर'रौशनी बन के मिरे दिल में उतर जाना था
मेरे वतन पे उतरते हुए अँधेरों कोजो तुम कहो मुझे क़हर-ए-ख़ुदा सा लगता है
जुगनुओं ने फिर अँधेरों से लड़ाई जीत लीचाँद सूरज घर के रौशन-दान में रक्खे रहे
इन अँधेरों में जहाँ सहमी हुई थी ये ज़मींरात से तन्हा लड़ा जुगनू में हिम्मत है बहुत
'वसीम' अपने अँधेरों का ख़ुद इलाज करोकोई चराग़ जलाने इधर न आएगा
पुकार ऐ जरस-ए-कारवान-ए-सुब्ह-ए-तरबभटक रहे हैं अँधेरों में तेरे सौदाई
हम नहीं जानते चराग़ों नेक्यों अँधेरों से दोस्ती कर ली
प्यार का गीत अँधेरों पे उजालों की फुवारऔर नफ़रत की सदा शीशे पे पत्थर बरसे
दाएरे अँधेरों के रौशनी के पोरों नेकोट के बटन खोले टाई की गिरह खोली
हम से इन अँधेरों को किस लिए शिकायत हैहम तो ख़ुद चराग़ों की लौ कतर के रोए थे
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