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ग़ज़ल
तजल्ली चेहरा-ए-ज़ेबा की हो कुछ जाम-ए-रंगीं की
ज़मीं से आसमाँ तक आलम-ए-अनवार हो जाए
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
जब तक कि वो झाँके था इधर महर से हम तो
वाक़िफ़ ही न थे महर पर अनवार कहाँ है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
ज़ालिम ये ख़मोशी बेजा है इक़रार नहीं इंकार तो हो
इक आह तो निकले तोड़ के दिल नग़्मे न सही झंकार तो हो