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ग़ज़ल
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
अगर कैफ़-ए-सुख़न मेरा निहाल-ए-ताक को पहुँचे
सुराही शाख़ बन जावे शराब अंगूर से टपके
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
मैं वो मय-कश हूँ न रक्खूँ कभी भूले से क़दम
कोई कह दे ये अगर ख़ुल्द में अँगूर नहीं
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
वक़्त-ए-आख़िर याद है साक़ी की मेहमानी मुझे
मरते मरते दे दिया अंगूर का पानी मुझे