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ग़ज़ल
वक़्त के इंहिदाम में, दिल की किताब दब गई
जाने कहाँ लिखा था तू, सोचता हूँ निकाल कर
राना आमिर लियाक़त
ग़ज़ल
हर लहज़ा इंहिदाम का है ख़ौफ़ मुझ को 'होश'
मैं इस दयार-ए-शोर-ओ-शर-ए-ज़लज़ला में हूँ