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ग़ज़ल
सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं
बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझ को इमाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
यार की मय-गूँ चश्म ने अपनी एक निगह से हम को 'नज़ीर'
मस्त किया औबाश बनाया रिंद किया बदनाम किया