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ग़ज़ल
मुझे आब-ओ-ख़ाक से मावरा किसी अप्सरा की तलाश थी
किसी माह-रू किसी गुल-बदन किसी जल-परी से बनी नहीं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मुझे आब-ओ-ख़ाक से मावरा किसी अप्सरा की तलाश थी
किसी माह-रू किसी गुल-बदन किसी जल-परी से बनी नहीं