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ग़ज़ल
तुम से भी बातचीत हो दिल से भी गुफ़्तुगू रहे
ख़्वाब ओ ख़बर का सिलसिला यूँही कभू कभू रहे
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
मौक़ा अगर मिला है तो लाज़िम है बात-चीत
तुम नाव से कलाम करो मैं भँवर के साथ