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ग़ज़ल
दिल है कि 'नुशूर' इक बाजा है सीने के अंदर तारों का
जब चोट पड़े झंकार उठे जब ठेस लगे थर्रा जाए
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
जिसे भेद कहते हो राज़ है जिसे बाजा कहते हो साज़ है
जिसे तान कहते हो है नवा तुम्हें याद हो कि न याद हो
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कहीं चाक-ए-जाँ का रफ़ू नहीं किसी आस्तीं पे लहू नहीं
कि शहीद-ए-राह-ए-मलाल का नहीं ख़ूँ-बहा उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील'
शर्त ये है कोई बाँहों में सँभाले मुझ को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
निगाह-ए-बादा-गूँ यूँ तो तिरी बातों का क्या कहना
तिरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं