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ग़ज़ल
अब जाने दूल्हा-भाई में क्या कीड़े पड़ गए
जाने को मनअ' करते हैं बाजी के घर मुझे
साजिद सजनी लखनवी
ग़ज़ल
किस दिन न उठा दिल से मिरे शोर-ए-परस्तिश
किस रात यहाँ काबे में नाक़ूस न बाजी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
वही है दुश्मन ऐ बाजी जो अच्छे वक़्त में लिपटे
वही है दोस्त ऐ बाजी मुसीबत में जो शामिल हो
शैदा इलाहाबादी
ग़ज़ल
न बाप माँ से न बाजी चची चचा से ग़रज़
ग़रज़ है अपनी तो उस बे-ग़रज़ ख़ुदा से ग़रज़
शैदा इलाहाबादी
ग़ज़ल
हैं शोहरे बाजी हमारी गत के जगत शरारत चकित चपत के
ये राग सुन-सुन नई घड़त के न लेंगे करवट नवाब कब तक
मोहसिन ख़ान मोहसिन
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
ज़िंदा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी
हर-चंद कि हूँ होश में हुश्यार नहीं हूँ