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ग़ज़ल
टूट गया जब दिल तो फिर ये साँस का नग़्मा क्या मा'नी
गूँज रही है क्यूँ शहनाई जब कोई बारात नहीं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
अंधों बहरों की नगरी में यूँ कौन तवज्जोह करता है
माहौल सुनेगा देखेगा जिस वक़्त बजेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
दिल में वो ज़ख़्म खिले हैं कि चमन क्या शय है
घर में बारात सी उतरी हुई गुल-दानों की
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो
ऐ काश हमारी आँखों का इक्कीसवाँ ख़्वाब तो अच्छा हो
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
तुम इस रस्ते में क्यूँ बारूद बोए जा रहे हो
किसी दिन इस तरफ़ से ख़ुद गुज़रना पड़ गया तो