आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "بارگاہ"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "بارگاہ"
ग़ज़ल
सजा कर लख़्त-ए-दिल से कश्ती-ए-चश्म-ए-तमन्ना को
चला हूँ बारगाह-ए-इश्क़ में ले कर ये नज़राना
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
'अदम' ख़राबात की सहर है कि बारगाह-ए-रुमूज़-ए-हस्ती
इधर भी सूरज निकल रहा है उधर भी सूरज निकल रहा है
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
इश्क़ की सादा-दिली है हर तरफ़ छाई हुई
बारगाह-ए-हुस्न में हर आरज़ू नौ-ख़ेज़ है
अकबर हैदरी कश्मीरी
ग़ज़ल
ऐ 'दिल' इस बारगह-ए-हुस्न में हूँ जब से मुक़ीम
इश्क़ शायद कि मिरी तब-ए-रवाँ रक़्स में है
दिल अय्यूबी
ग़ज़ल
मेरी आदत है वफ़ा दिल में शकेबाई है
बात यूँ बारगह-ए-नाज़ में बन आई है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
मक़्बूल-ए-बारगाह-ए-रिसालत हों मेरे शे'र
सरमाया-ए-नजात ग़ज़ल में समेट लूँ