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ग़ज़ल
हमें तो मौत भी दे कोई कब गवारा था
ये अपना क़त्ल तो बिल-क़स्द बिल-इरादा किया
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
ग़ज़ल
साक़ी-ए-गुलफ़ाम बा-सद एहतिमाम आ ही गया
नग़्मा बर लब ख़ुम ब सर बादा ब जाम आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
इंतिहा-ए-इश्क़ में दी जान मैं ने इस लिए
लाला बा-सद दाग़ उगता है मिरे कोहसार पर
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
फिर जनाब आसिफ़-ए-दौराँ में बा-सद ऐश-ओ-नाज़
हो गई आ कर के मसरूफ़-ए-जबीं-साई बसंत
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ये मय-कश कौन बा-सद लग़्ज़िश-ए-मस्ताना आता है
इशारे होते हैं वो रौनक़-ए-मय-ख़ाना आता है
अम्न लख़नवी
ग़ज़ल
ख़ुदा जाने मिला क्या मुझ को जा कर उन की महफ़िल में
कि बा-सद ना-मुरादी भी वहाँ से शादमाँ आया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
अगर घर से ब-क़स्द-ए-सैर निकले वो कमाँ-अबरू
तो बहर-ए-ताइर-ए-दिल हर मिज़ा सूफ़ार बन जाए
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
वो बज़्म-ए-ग़ैर में बा-सद-वक़ार बैठे हैं
हम उन के घर हमा-तन इंतिज़ार बैठे हैं