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ग़ज़ल
गाह क़रीब-ए-शाह-रग गाह बईद-ए-वहम-ओ-ख़्वाब
उस की रफ़ाक़तों में रात हिज्र भी था विसाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
तू ने हम से कलाम भी छोड़ा अर्ज़-ए-वफ़ा के सुनते ही
पहले कौन क़रीब था हम से अब तो और बईद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बईद क्या है मुरव्वत से तेरी ऐ शह-ए-हुस्न
निगाह-ए-लुत्फ़ से देखे जो तू गदा की तरफ़
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
उगाया जिस ने है बंजर ज़मीं में तुझ को 'नसीम'
है क्या बईद कि वो फूल भी खिला देगा