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ग़ज़ल
मैं दिया-सलाई की रौशनी में तलाश करता रहा तुम्हें
मगर अपना मक़्सद अँधेरी रात बताना हो कहीं यूँ न हो
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मैं दिया-सलाई की रौशनी में तलाश करता रहा तुम्हें
मगर अपना मक़्सद अँधेरी रात बताना हो कहीं यूँ न हो