आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "بجھانا"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "بجھانا"
ग़ज़ल
तिश्नगी तुझ को बुझाना मुझे मंज़ूर नहीं
वर्ना क़तरे की है क्या बात मैं दरिया दे दूँ
अली अहमद जलीली
ग़ज़ल
ऐ जलते हुए घर के लोगो शो'लों में घिरे क्या सोचते हो
जब आग बुझाना मुश्किल है बाहर निकल आओ कुछ तो करो