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ग़ज़ल
बा-मज़ा है किस क़दर इंकार उन का वस्ल में
तुझ में ऐ ख़ून-ए-जिगर लज़्ज़त कभी ऐसी न थी
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
ऐ 'फहीम' उस शोख़ की हैं सब अदाएँ इंतिख़ाब
बा-मज़ा है उस सितम-ईजाद की बेदाद भी