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ग़ज़ल
बरतरी इतनी भी अपनी न जता ऐ मिरे इश्क़
तू 'नदीम'-ओ-'ज़की' ओ 'काशिफ़'-ओ-'कामी' तो नहीं
अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
मिरी कमतरी की बिसात ही तिरी बरतरी की दलील है
मैं नशेब में न रहूँ अगर तू फ़राज़ तेरा दबा रहे
अरशद अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
हफ़ीज़ ताईब
ग़ज़ल
आफ़्ताब शकील
ग़ज़ल
तेरे सभी कुलाह-पोश कोह-ए-ग़ुरूर से गिरे
अपनी तो तर्क-ए-सर के बा'द इश्क़ में बरतरी रही
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
नज़ीर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जो इंग्लिस्तान की सी बरतरी ऐ हिन्द चाहे तू
मिला कर अपने फ़िर्क़ों को ये इज़्ज़-ओ-शान पैदा कर