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ग़ज़ल
लाश के नन्हे हाथ में बस्ता और इक खट्टी गोली थी
ख़ून में डूबी इक तख़्ती पर ग़ैन-ग़ुबारा लिक्खा था
अहमद सलमान
ग़ज़ल
खिंचते जाते हैं रसन-बस्ता ग़ुलामों की तरह
जिस तरफ़ क़ाफ़िला-ए-उम्र-ए-रवाँ खेंचता है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मुद्दई बस्ता-ज़बाँ क्यूँ न हो सुन कर मिरे शेर
क्या चले सेहर की जब साहिब-ए-एजाज़ आया
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
फ़हमीदा रियाज़
ग़ज़ल
सुर्ख़ी में नहीं दस्त-ए-हिना-बस्ता भी कुछ कम
पर शोख़ी-ए-ख़ून-ए-शोहदा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
काबा ओ दैर में अब ढूँड रही है दुनिया
जो दिल ओ जान में बस्ता था ख़ुदा और ही था
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचे
बात बढ़ कर ये ख़ुदा जाने कहाँ तक पहुँचे
हफ़ीज़ होशियारपुरी
ग़ज़ल
लहू देने लगी है चश्म-ए-ख़ूँ-बस्ता सो इस बार
भरी आँखों से ख़्वाबों को रिहा करना पड़ेगा