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ग़ज़ल
ज़ात-कदे में पहरों बातें और मिलीं तो मोहर ब-लब
जब्र-ए-वक़्त ने बख़्शी हम को अब के कैसी मजबूरी
मोहसिन भोपाली
ग़ज़ल
जुनूँ गर्म इंतिज़ार ओ नाला बेताबी कमंद आया
सुवैदा ता ब-लब ज़ंजीरी-ए-दूद-ए-सिपंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
चलो माना सब को तिरी तलब चलो माना सारे हैं जाँ ब-लब
प तिरे मरज़ में यूँ मुब्तला कहीं हम सा कोई बताओ था
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
तुम्हारे शौक़ में हूँ जाँ-ब-लब इक उम्र गुज़री है
अगर इक दम कूँ आ कर मुख दिखाओगे तो क्या होगा
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
सर-बुरीदा ख़स्ता-सामाँ दिल-शिकस्ता जाँ-ब-लब
आशिक़ी में सुर्ख़-रू नाम-ए-ख़ुदा होने लगे