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ग़ज़ल
उस चश्म में है सुरमे का दुम्बाला पुर-आशोब
क्यूँ हाथ में बदमस्त के बंदूक़ भरी दी
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
कुछ मौज़ूँ ना-मौज़ूँ करता या यूँ करता तो क्यों करता
लेकिन ख़ाली बैटरी ने भरवाँ बंदूक़ का काम किया
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी