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ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
रूह को उस की राह का पत्थर बनना ही मंज़ूर न था
बाज़ी हम ने ही जीती है अपनी इस क़ुर्बानी में
विलास पंडित मुसाफ़िर
ग़ज़ल
निगाहों को ख़िज़ाँ-ना-आश्ना बनना तो आ जाए
चमन जब तक चमन है जल्वा-सामानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मैं अपने पाँव की ज़ंजीर इक दिन ख़ुद ही काटूँगा
हदफ़ बनना नहीं मुझ को किसी की मेहरबानी का
ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल
मुलाज़िम बनना था किस को मुलाज़िम बन गया कोई
हुनर ज़ेर-ए-सिफ़ारिश है किसी से कुछ नहीं बोलें