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ग़ज़ल
ये दिल की तिश्नगी है या नज़र की प्यास है साक़ी
हर इक बोतल जो ख़ाली है भरी मालूम होती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
धुआँ सिगरेट का बोतल का नशा सब दुश्मन-ए-जाँ हैं
कोई कहता है अपने हाथ से ये तल्ख़ियाँ रख दो
ज़ुबैर रिज़वी
ग़ज़ल
प्यार की यूँ हर बूँद जला दी मैं ने अपने सीने में
जैसे कोई जलती माचिस डाल दे पी कर बोतल में
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
'फ़ैज़' की फ़िक्र की बोतल में है जो ज़हर-ए-सुख़न
देखना है की अभी कितने बरस पीते हैं
फ़ैज़ ख़लीलाबादी
ग़ज़ल
ख़बर भी है तुझे मय-ख़्वार तो बदनाम है साक़ी
दबा कर कितनी बोतल ले गए परहेज़-गार अब तक