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ग़ज़ल
मुझे बताओ कि मेरी नाराज़गी से तुम को है फ़र्क़ कोई
मैं खा रही हूँ न-जाने कब से ही पेच-ताव मुझे मनाओ
आमिर अमीर
ग़ज़ल
बैठे हैं फुलवारी में देखें कब कलियाँ खिलती हैं
भँवर भाव तो नहीं है किस ने इतनी राह दिखाई है
मीराजी
ग़ज़ल
सब दौलत-ए-कौनैन जो दी इश्क़ के बदले
इस भाव ये सौदा मुझे सस्ता नज़र आया
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो
कभी तीर-ए-निगाह-ए-तुंद का बरसाव करते हो